शंकर जयकिशन की याद में
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५० और ६० के दशक के सबसे कामयाब और प्रतिभाशाली संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन को माना जाता हैं। उस दौर के सबसे ज़्यादा कमानेवाले संगीतकारों में भी उनकी गणना होती हैं। सबसे बड़े बेनर की फ़िल्मे, बड़े अभिनेता (राज कपूर, राजेंद्र कुमार , शम्मी कपूर) और लगातार बिनाका गीतमाला पे सबसे ऊपर की पायदान पे ज़्यादातर शंकर जयकिशन के ही गीत होते थे।
उनकी टीम में गीतकार शैलेंद्र और हसरत भी थे। गायक कलाकर मुकेश, रफ़ी और लता का भी उनके गाने हिट करने में बड़ा योगदान रहा। क़रीब २० साल तक (१९४९-१९६९) ये संगीतकार जोड़ी लोकप्रियता की शिखर पे बनी रही। हर फ़िल्म निर्माता और बदा हीरो इनहिका संगीत अपनी फ़िल्मी में चाहता था। एक के बाद एक सफल गाना बनाने के कोई अद्भुत फ़ोरमूला था शंकर जयकिशन के पास।
सफलता का ये सिलसिला रुका तब जब इस अनमोल जोड़ी को बुरी नज़र लग गयी। दोनो में कुछ वजहोंसे अनबन हुई और जयकिशन बीमार पड़ने लगे जिस वजह से १९७१ में उनकी मौत हो गयी।उसी दौरान गायिका शारदा को शंकर ने हर तरह से आगे बढ़ाने का प्रयास किया। अपनी फ़िल्मों में गाने गँवाये, फ़िल्मफ़ेयर का पुरस्कार दिलवाया, पोप गानों का अल्बम रीलीज करवाया, राष्ट्रपति भवन में कार्यक्रम करवाया, लेकिन फिर भी बात ना बनी। शारदा की लोकप्रियता तितली उड़ी तक ही सीमित रह पायी।
शंकर के निधन के बाद उनकी खोज भी फ़िल्मी संगीत की दुनिया से गुम हो गयी।
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