JAWAAN (2023) : review

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And finally the much hyped, much awaited Jawaan saw light of the day ! Big stars, big budget( humongous budget actually), big music composer, everything super large. But does it meet the expectations of the average viewer? No it goes not. Read on.  A decorated jawan locks horns with a criminal called Kaali, this is in 1986 ( the year movies like Aakhri Raasta released, just for reference). Kaali gets him eliminated and send the pregnant wife to jail. The baby born in jail grows up to become the hero (look alike of the father) and decides to avenge the misdeeds done to his innocent patriotic parents. Well, isn’t it a masaaledaar full on Bollywood- Tollywood drama subject ?  And then the director Atlee also borrows ideas and references from various retro movies, some idea from Sholay (1975) as the hero assembled a gang of jailed Qaidis in order to form a team to nab the villain, then there’s an entire episode borrowed from Dhartiputra (1993), and the basic theme is copy pasted ...

Flashback# भूली बिसरी एक कहानी अनुराधा की...



आज भी शिरडी, बनारस, तिरूपथि जैसे अनेक धार्मिक स्थानों मे प्रातःकाल एक सुरीली आवाज़ मे भजन सुनायी देते हैं। बल्कि ये कहना मुनासिब होगा के ज़्यादातर इसी एक मधुर आवाज़ मे भजन सुनाई देते हैं। ये आवाज़ हैं गुज़रे ज़माने की मशहूर पाश्वगायिका अनुराधा पौदवाल की। पद्मश्री से सम्मानित यह ज्येष्ठ गायिका आज गुमनामी का जीवन व्यतीत कर रही हैं। जीवनसाथी तीस साल पहले गुज़र गए थे और जवान बेटा पिछले साल २०२० मे गुज़र गया। अपने आलीशान बंगले मे मुम्बई में अनुराधा अकेले ही रेहती हैं। 

१९५२ में जन्मी अल्का नाडकरणी को बचपन से ही संगीत से लगाव था। रेडियो पे वो लता मंगेशकर के फ़िल्मी गीत सुनती थी और उन्ही की तरह गाने की कोशिश किया करती थी। ये बडे अचरज की बात हैं के उन्होंने कभी संगीत की शीक्षा प्राप्त नहीं की। १८ साल की उमर मे संगीत सहायक अरुण पौदवाल से विवाह रचाके अल्का का नाम अनुराधा हो गया। अरुण उन दिनों एस डी बरमन के सहायक थे। अनुराधा की मीठी आवाज़ सुनकर बरमन दा ने उन्से अभिमान (१९७३) फ़िल्म के लिए एक श्लोक रिकोर्ड करवाया। बस यहीं से अनुराधा का संगीत सफ़र शुरू हुआ। 




१९७३ मे शुरू किया सफ़र अनुराधा के लिए आसान नहीं था। संगीत क्षेत्र में लता मंगेशकर और आशा भोंसले का एकाधिकार जम चुका था और अनुराधा को पहला सुपरहिट गीत गाने के लिए दस साल का कठिन इंतेज़ार करना पड़ा। इस दौरान अनुराधा ने कुछ गीत गाए लेकिन वो उतने सफल नहीं हो पाए उन्मे से कालिचरन(१९७६) का गीत “एक बटा दो’ थोड़ा बहुत सफल हुआ। अनुराधा को सफलता मिली हीरो (१९८३) के शीर्षक गीत “तु मेरा जानु” के लिए जो १६ हफ़्तों तक बिनाका गीतमाला के पहले पायदान पे टिका रहा। इस्स गाने ने अभूतपूर्व यश हासिल किया और अनुराधा की गाड़ी चल पड़ी। 



१९८३ से १९९२ तक अनुराधा ने कयी सारे हिट गीत गाए। हिंदी और मराठी के अलावा बंगाली, असामी, ओरियाँ, राजस्थानी, गुजराती सभी भाषाओं में फ़िल्मी और ग़ैर फ़िल्मी गीत गाए।यह वो दौर था जब अनुराधा को ज़बरदस्त सफलता हासिल हई। टी सीरिज़ के कर्ता धर्ता गुलशन कुमार से अनुराधा की मुलाक़ात हुई और वो उनके लिए भजन के अल्बम गाने लगी। साथ ही साथ गुलशन कुमार ने अपनी फ़िल्मों में भी अनुराधा से गवाया। 

८० के दशक में तो लता मंगेशकर के सबसे क़रीब पहुँचने वली गायिका एक ही रही वो थी अनुराधा। हर गली नुक्कड़ पे, शादियों मे, घरों घरों में अनुराधा की रेशमी आवाज़ गूंजने लगी। उनपे कुछ संगीत समीक्षकों ने ये भी आरोप लगाए के वो लता की हुबहू नक़ल करती हैं लेकिन अनुराधा ने इस बात का खंडन किया। उनकी क़िस्मत इतनी अच्छी थी के उन्हें लगातार चार बार फ़िल्मफेर का सर्वोत्कृष्ट गायिका का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ, उत्सव (१९८४) के “मेरा मन बाजे मृदंग मंजीरा” , आशिक़ी (१९९०) के “नज़र के सामने”, दिल हैं के मानता नहीं(१९९१) का शीर्षक गीत और बेटा(१९९२) के “धक धक” इन्न गीतों के लिए पुरस्कार मिला। अनुराधा के सितारे अब गर्दिश मे पहुँच चुके थे, उन्हें कलत नक़लट(१९८९) फ़िल्म के गीत “एक रेशमी” के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। 



१९९१ मे सेवी मेगजिन में दिए इंटेरव्यु में अनुराधा ने सनसनीख़ेज़ खुलासे किए, उन्होंने लता मंगेशकर पे ये आरोप लगाया के उन्हें संगीत क्षेत्र में आगे आने से लता ने रोका था, ये भी कहा के दस साल तक उन्हें आगे बढ़ने से रोकती रहीं। उनकी इन्न बातों से फ़िल्म जगत में सनसनी फैल गयी क्यूँकि यह पहली बार हुआ था के किसी गायिका ने लता पे ऐसे आपत्ति जनक आरोप लगाए थे। ये वो दौर था जब अनुराधा सफलता की चोटी पे थी और हर संगीत निर्देशक उनसे गाने गँवा रहा था। फिर अचानक से उनके पती अरुण का दिल का दौरा पढ़ने से आकस्मिक निधन हो गया। 



पती के निधन के पश्चात अनुराधा पूरी तरह आध्यात्मिक हो गयी। १९९२ मे उन्होंने घोषणा की के वो फ़िल्मों से सन्यास ले रही हैं और सिर्फ़ टी सीरिज़ के लिए भजन या आध्यात्मिक गीत ही गाएँगी। ये वो समय था जब बड़े से बड़े संगीतकार अनुराधा से गाना गवाने के लिए आतुर थे। गुलशन कुमार ने इस समय अनुराधा से अपनी कम्पनी के सभी भजन अल्बम में गीत रिकोर्ड करवाए। १९९७ में गुलशन कुमार की दिन दहाड़े अंडरवर्ल्ड ने निघृण हत्या करायी। ये अनुराधा के लिए एक ज़ोरदार झटका था , इस्स दौरान अनुराधा ने फिर से फ़िल्मों मे वापसी की। १९९७-२००५ तक कुछ गीनी चुनी फ़िल्मों में और नीजी अल्बम में अनुराधा ने गीत गाए लेकिन पहले जैसी बात ना बन पायी। अल्का याग्निक काफ़ी आगे निकल आयी थी और श्रेया घोषाल भी उभर रही थी, इस दौड़ में अनुराधा पीछे रह गयी और कल्यूग (२००५) के एक गीत के बाद फ़िल्मी संगीत से लोप हो गयी। 



कुछ सालों तक अनुराधा ने धार्मिक गीत गाए लेकिन फिर से संगीत से दूर हुई। शायद १९९२ मे फ़िल्मी संगीत को अलविदा ना कहती तो और भी बड़ा मक़ाम हासिल कर पाती। लेकिन ८० के दशक मे अनुराधा ने जितने हिट गीत गाए उनका कोई तोड़ नहीं। जैसे पहले की कहा था के आज भी धार्मिक स्थानो में अनुराधा के गाए भजन सुनायी देते हैं और रेडियो पे भी भूले बिसरे उनके अनगिनत गीत सुनायी देते हैं। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता के अनुराधा हिंदुस्तानी संगीत की दुनिया की एक अभूतपूर्व हिस्सा रह चुकी हैं और उनके गीत भुलाए नहीं भूल सकते। 

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